India-China के विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता, सीमा विवाद को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम
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India-China के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को हल करने के लिए विशेष प्रतिनिधि (SR) स्तर की वार्ता का आयोजन बुधवार को बीजिंग में होने जा रहा है। यह वार्ता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वार्ता 2020 के बाद से जारी पूर्वी लद्दाख के वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बढ़ते तनाव के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में एक नई शुरुआत को दर्शाती है।
भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल इस बैठक में प्रतिनिधित्व करेंगे, जबकि चीन के विदेश मंत्री वांग यी को चीन की ओर से विशेष प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया है। डोभाल मंगलवार को बीजिंग पहुंच चुके हैं और बुधवार को होने वाली वार्ता में हिस्सा लेंगे।
यह वार्ता 22 दौर की लंबी वार्ताओं के बाद आयोजित की जा रही है, और इस बार भारत का जोर LAC पर भारत-चीन के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए वार्ता को फिर से शुरू करने पर रहेगा। इसके अलावा, यह वार्ता 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई सहमति के बाद आयोजित हो रही है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में एक नई उम्मीद जगी है।
विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता की शुरुआत और उद्देश्य
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता की व्यवस्था 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बीजिंग यात्रा के दौरान की गई थी। इस पहल का उद्देश्य भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का स्थायी समाधान खोजना था। उस समय से लेकर अब तक, 22 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन अब तक इन वार्ताओं में कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।
विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत होती है, और इस वार्ता का उद्देश्य सीमा विवाद को सुलझाना और दोनों देशों के रिश्तों में स्थिरता लाना है।
पूर्वी लद्दाख में तनाव और इस वार्ता की आवश्यकता
2017 में डोकलाम विवाद और 2020 में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर तनाव ने भारत-चीन संबंधों को एक गंभीर मोड़ पर ला दिया। 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने दोनों देशों के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ उत्पन्न किया। इसके बाद से, दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ गया था और स्थिति को शांत करने के लिए कई कदम उठाए गए थे।
इस वार्ता का आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों के बीच सीमा पर एक स्थिर स्थिति स्थापित करने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है। भारत ने हमेशा अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि LAC पर कोई भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया जाएगा और सीमा पर शांति बहाल करना सबसे महत्वपूर्ण है।
डोभाल का अनुभव और वार्ता की दिशा
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इस वार्ता में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करेंगे। डोभाल का अनुभव इस प्रकार की वार्ताओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि वे पहले भी इस विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में शामिल रहे हैं। 2014 से लेकर 2019 तक डोभाल ने इस वार्ता में भारत का नेतृत्व किया और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले 22 दौर की वार्ताओं में चीन ने सीमा विवाद को हल करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। चीन का रवैया हमेशा जटिल रहा है, और वह इस मुद्दे को लम्बे समय तक टालने की कोशिश करता है। भारत ने भी कई बार इस बात को रेखांकित किया कि चीन की रणनीति इसमें देरी करना और मुद्दे को लटकाए रखना है।
LAC के निर्धारण पर सहमति की कमी
22 दौर की वार्ताओं के बाद भी यह कहा जा सकता है कि अब तक किसी भी क्षेत्र में LAC के निर्धारण पर भारत और चीन के बीच कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है। 2017 का डोकलाम विवाद और 2020 का पूर्वी लद्दाख विवाद यह साबित करते हैं कि इस विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता का कोई बड़ा सकारात्मक असर नहीं पड़ा है। इन विवादों को हल करने के लिए शीर्ष नेताओं की बैठक ही निर्णायक साबित हुई।
हालांकि, इस बार विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता को पांच साल बाद फिर से शुरू किया जा रहा है, और भारत उम्मीद करता है कि इस वार्ता से दोनों देशों के बीच एक स्थिर और स्थायी समाधान निकलेगा।
भारत की उम्मीदें और चीन की स्थिति
भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह LAC पर शांति और स्थिरता चाहता है और इसे किसी भी कीमत पर बनाये रखना चाहता है। साथ ही, भारत ने यह भी रेखांकित किया है कि चीन को अपनी आक्रामक नीतियों को बदलना होगा, ताकि दोनों देशों के रिश्ते स्थिर हो सकें।
चीन की स्थिति हमेशा जटिल रही है, और चीन द्वारा सीमा विवाद को लंबा खींचने की रणनीति अपनाई जाती है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में चीन की आक्रामकता कम हुई है, लेकिन फिर भी सीमा पर पूरी तरह से शांति स्थापित करने में वक्त लग सकता है।
भारत-चीन के बीच बढ़ते तनावों के समाधान की दिशा
भारत और चीन के बीच संबंधों को स्थिर और शांतिपूर्ण बनाने के लिए यह वार्ता एक महत्वपूर्ण अवसर है। हालांकि, यह देखना होगा कि क्या दोनों देशों के बीच इस वार्ता से कोई ठोस समाधान निकल पाता है या नहीं।
इस वार्ता से यह उम्मीद जताई जा रही है कि दोनों देशों के रिश्तों में एक नई शुरुआत होगी, जो केवल सीमा विवाद तक सीमित नहीं होगी, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रिश्तों में भी सुधार लाने में मदद करेगी।
भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता का आयोजन एक नई उम्मीद लेकर आया है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए यह वार्ता एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इस वार्ता से पहले कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनानी होगी। भारतीय पक्ष की स्पष्ट स्थिति यह है कि LAC पर शांति और स्थिरता बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि चीन अपने आक्रामक रवैये में बदलाव लाए और दोनों देशों के बीच एक स्थिर और लंबे समय तक चलने वाली शांति सुनिश्चित हो सके।